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परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया(परिवर्तन प्रकृति का नियम है।)

परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया(परिवर्तन प्रकृति का नियम है।)


मित्रो परिवर्तन प्रकृति का नियम है।यह हमने बचपन मे किताबो में पढ़ा था।यह बातें अगर ध्यान से देखा जाए तो जीवन में भी यह सही साबित होती हैं।परिवर्तन जीवन में भी हर पल हो रहा हैं।आइये कुछ उदाहरणों से समझने का प्रयास करते हैं।

                  पहले हम प्रकृति में परिवर्तन को समझते हैं।मित्रो प्रकृति में देखा जाए तो हर पल मौसम,तापमान,आर्द्रता,हवा की गति,वायु का दबाव इन सभी मे कुछ न कुछ परिवर्तन हो रहा है।पौधा हम लगाते है।उसमें खाद डालते हैं।पौधे पर पानी सींचते हैं।पौधा धीरे धीरे बड़ा होता हैं।पौधा वृक्ष बनता है।अब वृक्ष पर फूल लगते हैं।फूल से फल निकलते हैं।फल पक कर नीचे गिरते हैं ।कुछ फल दूसरे जंतु खा  जाते है और कुछ फल नीचे गिर जाते हैं। फल फिर सड़ने लगता है। इधर इसके  बीजों से फिर पौधे तैयार होने लगते हैं।परिवर्तन का यह चक्र चलता रहता हैं। प्रकृति में जो परिवर्तन हो रहा है उसे हम बहुत ज्यादा नियंत्रित नही कर सकते हैं।जैसे आंधी,सूनामी ,भूकंप,ज्वालामुखी, वर्षा इन्हें हम नियंत्रित नही कर सकते हैं।.     
                                    सुनामी 
                                    भूकंप
ज्वालामुखी
दोस्तो अब हम जीवन मे परिवर्तन को समझते हैं।मित्रो जीवन मे परिवर्तन कई स्तरों पर हो रहा हैं जैसे -(1)शारीरिक स्तर पर परिवर्तन(2)मानसिक स्तर पर परिवर्तन (3)सामाजिक स्तर में रीति रिवाजों में परिवर्तन

(1)शारीरिक स्तर पर परिवर्तन-दोस्तो शारीरिक स्तर पर परिवर्तन    का सम्बन्ध हमारे उम्र से हैं।  उम्र  /आयु हर पल बढ़ रही हैं।शारीरिक क्षमता में परििवर्तन हो रहा  हैंं।उम्र बढ़ने के    साथ  शारीरिक क्षमता   घट रही हैं।
        शरीर की मांसपेशियों में कमजोरी आ रही हैं।हड्डियां कमजोर हो रही हैं।आंखे कमजोर हो रही हैं।अब दृष्टि पहलर जैसी नही हैं।बच्चा पहले धीरे धीरे बड़ा होता हैं फिर जवान होता हैं फिर धीरे धीरे बुडडा होता जाता हैं।अंत में देह छोड़ देता हैं।फिर आत्मा नए शरीर मे प्रवेश करती हैं(भागवत गीता के अनुसार) और यह चक्र ऐसे ही चलता रहता हैं।

(2)मानसिक स्तर पर  परिवर्तन-दोस्तो समय के साथ साथ    लोगो के सोच में भी बदलाव आता हैै।बचपन से 
जवानी में आने पर विचार में परिपक्वता आती हैं।उम्र बढ़ती जाती हैं और उम्र ढलती जाती हैं।मनुष्य की बुद्धि बुढ़ापे में फिर बच्चो की तरह हो जाती हैं।इस तरह मानसिक/बौद्धिक स्तर भी जीवन में बदलता रहता हैं।

(3)सामाजिक स्तर में रीति रिवाजों में परिवर्तन-दोस्तो आप अपने भूतकाल और वर्तमान के रीति रिवाजों   में    ध्यान से तुलना   करे तो पाएंगे कि      रीति रिवाजों में   भी परिवर्तत हो रहा हैं।कुुुछ नए रीति   रिवाजो को अपनाया जा रहा हैंं और   कुुुछ   को छोोड़ दिया जा रहा हैैं।। जैसे हरछठ का    त्यौहार  मूलतः    बिहार   का त्योंहार हैं ।पर इस समय यह  उत्तर प्रदेश,झारखंड,      मध्य प्रदेश और अन्य प्रा्नतो में भी मनाया जाने लगा हैं। 
           पहले हमारे यहाँ शादी,जन्मदिन,श्राद्ध भोज में पत्तल में जमीन पर बैठा कर खिलाने के रिवाज था।आज इसकी जगह बफर सिस्टम ने ले ली है।मुख्य कारण यही है कि समय की कमी सभी के पास है।हर कोई सोचता है कि बैठा कर खिलाने के लिए अधिक आदमी चाहिए जबकि बफर सिस्टम में केवल ठेका दे देना ही काफी हैं। 
     इस प्रकार रीति रिवाज भी लोगो के शौक के अनुसार ,लोगो के जरूरतों के अनुसार परिवर्तित हो रहा हैं।

    निष्कर्ष- इस प्रकार दोस्तो परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं।यह जीवन मे भी सटीक और सही हैं।परिवर्तन हमेशा हुआ है,परिवर्तन हमेशा होता हैं और परिवर्तन हमेशा होता रहेगा।।।                             -नमस्कार

            आपका दोस्त-कामनाशीष सरकार

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2 टिप्पणियाँ


  1. मित्रो आप अपने सुझाव भेजे और ब्लॉग में किसी भी कमी के बारे में जरूर बताएं और आप किस टॉपिक पर ब्लॉग चाहते है ? यह भी बताए।उस टॉपिक पर ब्लॉग जरूर बनायेंगे।

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  2. मित्रो आप अपने सुझाव भेजे और ब्लॉग में किसी भी कमी के बारे में जरूर बताएं और आप किस टॉपिक पर ब्लॉग चाहते है ? यह भी बताए।उस टॉपिक पर ब्लॉग जरूर बनायेंगे।

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